पापा उस वक्त आप कहाँ थे ?

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ज़िन्दगी की सुलगती धूप में राख बनते देखा था आपको,

बन्दगी की बिखरती रेत में सिकते हुए देखा था आपको ।

हाँ था वो दौर ऐसा कि साथ रहते ना बनता,

परवाह बहूत करते आप पर कभी कहते ना बनता।

देखा था उनको मैंने छिपकर आँसू बहाते,

याद जब आती पापा आपकी उस वक्त आप कहाँ थे?

साथ ना थे कभी आप साथ होकर,

मालामाल हूँ मैं आज भी सब कुछ खोकर।

क्यूँ ? क्यूँकि सब कुछ सह कर आज भी हम साथ है,

सिर पर मेरे आपका साया और हाथों में आपका हाथ है।

ना तो थी मैं गुड़िया ना ही कोई परी,

मैं तो थी बस एक पुड़िया दर्द भरी।

पर फिर भी, कुछ क़श्मकश ज़रूर थी बाप बेटी के इस रिश्ते में

यही तो ख़ास बात है यारों

हालत चाहे कैसे भी क्यूँ ना हो बस यही मेरे जज़्बात है।

# नीतू की कलम से

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