झुलस रहा माटी का कण कण उमड़ रही रसधार है
त्योहारों का देश हमारा, हमको इससे प्यार है
Deepawali

जब भी कोई भी त्योहारों की तैयारी होते देखती हूं मुझे कवि दिव्यांशु पाठक जी की ये कविता जो आज सीबीएसई में कक्षा पांचवी के पाठ्यक्रम में है याद आ जाती है। भारत त्योहारों का देश है और यहां हर त्योहार की अपनी परंपरा, अपनी विशेषता है। दीपावली का त्योहार हम सब मनाने वाले है, चलिए इस बार एक सार्थक दीवाली मनाने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले बात करते हैं दीपावली मनाने के कारण की, भगवान श्री राम जब दशरथ का वध कर सीता मैया के साथ अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उस अमावस्या की काली रात को रोशन कर खुशियां मनाई थी और तभी से शंखनाद हुआ ‘दीप जले दिवाली आई घर घर में खुशियां छाई’ । अब इसको वर्तमान परिप्रेक्ष्य से तुलना करते हैं ये दिवाली का पर्व हम सब के लिए विशेष है। इस बार कोरोना रूपी रावण का वध कर भारत वर्ष पुनः अपनी दिशा में वापस लौटा है। अंधकार की अमावस्या से हम पुरुषार्थ से लड़ते है। इस दीपावली का आनंद अपनो के बीच ले रहे है। इस बार परिस्तिथिया गंभीर है, हम में से कइयों ने अपने परिजनों, मित्रो तथा अपनो को खोया है, कारोबार, शिक्षा, कार्यप्रणाली सब कुछ ही प्रभावित हुआ है। आइए अपने बीते कल से सबक लेते हुए रोशनी के इस त्योहार को खुशहाल बनाएं।
How did we execute the plan ?


धनतेरस, शुभ दिन पर सोना, चांदी, गहने, धन खरीदते है, इस बार किसी जरूरतमंद को धन दान कर उसका त्योहार खुशहाल बनाने की चेष्टा कर, लक्ष्मी मां जरूर प्रसन्न होगी।
रूप चौदस, इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में दर्शन करने से पाप कटता है तथा सौंदर्य की प्राप्ति होती है। आज के संदर्भ में अगर बात करू तो हमें मन को सौंदर्यमय बनाने की जरूरत है, अपने आदर्शों तथा संस्कारों के पत्तो से स्नान करने की जरूरत है, तभी हमारा गिरगिट की तरह बदलते स्वभाव जो की लालच, छल, कपट जैसे रंग बदलता है उसको करुणा भाव में स्थिर करने की जरूरत है आइए इस रूप चौदस के दिन हम तन के साथ मन का सौंदर्य बढ़ाने का प्रयास करें ।
दीपावली, आतिशबाजी, पटाखे, मिठाई, नए कपड़े और साफ सुथरा घर , ये दीवाली के कुछ आयाम है। आइए इस बार प्रण ले कि पटाखे रहित प्रदूषण मुक्त दीवाली मनाई ताकि आने वाले समय में किसी कोरोना या अन्य महामारी के रूप में हमें किसी रावण का सामना ना करना पड़े। आइए दया भाव के देशी घी रूपी मानवीयता की मिठाई , सद्भाव और सौहाई के साथ संपूर्ण सृष्टि में वितरित करें। आइए सिर्फ अपने घरों की जाले नही अपने मनो की कटुता के ताले भी तोड़े, अपने घरों के साथ साथ अपने समाज अपने राष्ट्र को भी साफ सुथरा रखे। इस बार नए कपड़े खरीदते समय लोकल व्यापारियों तथा छुट पुट छोटे व्यापारियों से खरीदकर उनकी दीपावली भी सार्थक करे। चाइना की लाइट तथा अन्य सामग्री को टाटा बोलकर अपनी भारत में रहने वाले कुम्हारों से दिए खरीदकर उनकी मुस्कान का कारण बने। विज्ञापनों से प्रभावित होकर स्टाइलिश बन ने की बजाए खादी हस्तकला जैसे पारंपरिक वस्त्र पहनकर देशी रॉकस्टार बने। अपनी सभ्यता संस्कृति तथा परंपराओं को जो घुट घुट कर मर रही है उन्हे फिर से जिंदा करे। आतिशबाजी की रोशनी बिखेरे। जो लोग अपने परिजनों को खो चुके है उनके साथ ये दिन मनाए, बमो की लड़ी छोड़ने की बजाए पेड़ो की लड़ी लगाए उन बेजुबान पशु पक्षियों को शोर से परेशान करने की बजाए उनकी शांति का कारण बने।
